Khatu Shyam ji - भगवान खाटू श्याम जी
जय श्री खाटू श्याम जी
भगवान खाटू श्याम जी का मंदिर राजस्थान में बहुत ही प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है जो कि जयपुर से मात्र 80 किलोमीटर की दूरी पर है, जयपुर से यहां पहुंचने में लगभग 1 घंटे का समय लगता है। खाटू श्याम जी के भक्तों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है क्योंकि यहां सबकी मनोकामनाए पूरी होती है। वैसे तो प्रतिदिन यहां भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है परंतु हर महीने शुक्ल पक्ष एकादशी को दिनभर यहां लाखों लोग दर्शन के लिए आते हैं और अपनी मनोकामनाए पूरी करते हैं। खाटू श्याम जी को अनेकों नामों से जाना जाता है जैसे शीश के दानी, लखदातार, हारे का सहारा, मोर छड़ी वाला, श्याम धनी, खाटू नरेश आदि ।
वास्तव में खाटू श्याम जी को भगवान कृष्ण का ही एक रूप माना जाता है। कलयुग में जब महाभारत का युद्ध हो रहा था तब खाटूश्यामजी जी को भगवान श्री कृष्ण ने वरदान दिया था कि वे उन्हीं के नाम से पूजे जाएंगे और जो भी भक्त उनकी सच्चे मन से एवं प्रेम भाव है पूजा करेंगे उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी।
खाटू श्याम जी को पहले बर्बरीक के नाम से जाना जाता था वे अति बलशाली भीम के पोत्र एवं घटोत्कच व मोर्वी के पुत्र थे। बचपन से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे इसके अलावा तपस्या करके इन्होंने बहुत सी शक्तियां व तीन अमोघ बाण प्राप्त कर लिए थे जिनसे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर सकते थे।
जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तब बर्बरीक भी युद्ध में शामिल होना चाहते थे इसीलिए जब वह अपनी माता से आज्ञा लेने गए तो उनकी माता ने यह समझकर की कौरवों के पास तो बहुत बड़ी सेना है और पांडव अवश्य ही युद्ध में हार रहे होंगे और क्योंकि ये कभी पांडवों से मिले भी नहीं थे तो उन्हें पहचानते नहीं थे। अतः पांडवों की पहचान करने के लिए बर्बरीक की माता ने उनसे वचन लिया कि जो हार रहे हैं उनका साथ देना। इस प्रकार बर्बरीक नीले घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष लिए कुरुक्षेत्र की और चल पड़े।
भगवान कृष्ण को जब इसकी जानकारी मिली कि बर्बरीक युद्ध में शामिल होने आ रहा है और वह हारने वाले का साथ देने वाले हैं क्योंकि भगवान कृष्ण को मालूम था कि कौरव युद्ध हारने वाले हैं यदि बर्बरीक कौरवों का साथ देंगे तो युद्ध के परिणाम कौरवों के पक्ष में यानी अधर्म के पक्ष में चले जाएंगे। इसलिए भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण का वेश बनाकर बर्बरीक से मिलने पहुंचे।
भगवान कृष्ण जब बर्बरीक से मिले तब उनसे पूछा कि तुम केवल तीन बाण लेकर युद्ध कैसे लड़ोगे, इस युद्ध में तो बड़े-बड़े महावीर हैं जिनके पास अनेकों अनेक तरह के बाण है।
तब बर्बरीक ने उन्हें तीन बाण की शक्ति के बारे में बताया और कहा कि केवल एक बाण पूरी सेना का विनाश करके तूणीर में वापस आ जाएगा और यदि तीनों बाणो का प्रयोग किया तो पूरा ब्रह्मांड का विनाश हो जाएगा। इस पर भगवान कृष्ण ने बर्बरीक से इसका प्रमाण देने को कहा और कहा कि इस वृक्ष के सभी पत्ते अगर एक बाण से भेद दोगे तो मैं मान जाऊंगा कि तुम वास्तव में महावीर हो। और भगवान कृष्ण उस वृक्ष का एक पत्ता अपने पांव के नीचे छुपा लिया। बर्बरीक ने जब बाण चलाया तो उस वृक्ष के सभी पत्ते भेद कर वह बाण भगवान कृष्ण की पैर के पास आकर रुक गया। इस पर बर्बरीक ने कहा कि महात्मा अपना पैर हटाइए नहीं तो यह बाण आपका पैर भी भेद देगा।
इस प्रकार जब भगवान कृष्ण ने बर्बरीक की शक्ति देखी तब उनसे पूछा कि तुम किस ओर से युद्ध करोगे। तब बर्बरीक ने कहा कि वह अपनी माता को वचन देकर आए हैं कि हारने वाले की तरफ से युद्ध करूंगा। तब भगवान कृष्ण जो ब्राह्मण के रूप में थे उन्होंने बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की और उनसे वचन लिया कि जो भी मांगेंगे उन्हें देना पड़ेगा। बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया तब भगवान कृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक समझ गए के कोई साधारण ब्राह्मण इस प्रकार शीश का दान नहीं मांग सकता और उन्होंने भगवान कृष्ण से अपना वास्तविक परिचय देने की प्रार्थना की। भगवान कृष्ण ने अपना वास्तविक रूप दिखाकर बर्बरीक को इस सब का कारण समझाया।
बर्बरीक ने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की कि वह यह युद्ध अंत तक देखना चाहते हैं इस प्रकार भगवान कृष्ण ने उनके शीश को युद्ध भूमि के समीप एक पहाड़ी पर सुशोभित किया जहां से बर्बरीक संपूर्ण युद्ध को देख सकते थे। इस प्रकार बर्बरीक को शीश का दानी कहां गया है।
श्री कृष्ण, वीर बर्बरीक के बलिदान से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान दिया कि कलयुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे एवं लोगों की मनोकामना पूर्ण करोगे।
मान्यता हैं कि कालांतर में एक गाय एक स्थान पर रोज अपने स्तनों से दूध की धारा स्वतः बहा रही थी बाद मैं खुदाई करने पर वह एक शीश प्रकट हुआ। साथ ही खाटू नगर के राजा को स्वपन में मंदिर निर्माण कर शीश मंदिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरणा मिली। तब उस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश सुशोभित किया गया जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता हैं। वर्तमान मंदिर का निर्माण 1027 ईस्वी में श्री रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी श्रीमती नर्मदा कंवर द्वारा करवाया गया था।
श्री खाटू श्याम जी की आरती
ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे। खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे...॥
रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे। तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे...॥
गल पुष्पों की माला, सिर पार मुकुट धरे। खेवत धूप अग्नि पर दीपक ज्योति जले॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे...॥
मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे। सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे...॥
झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृदंग घुरे। भक्त आरती गावे, जय - जयकार करे॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे...॥
जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे। सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम - श्याम उचरे॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे...॥
श्री श्याम बिहारी जी की आरती, जो कोई नर गावे। कहत भक्त - जन, मनवांछित फल पावे॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे...॥
जय श्री श्याम हरे, बाबा जी श्री श्याम हरे। निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे॥
ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे। खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे॥
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जय श्री श्याम
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